Yagya
जीवन यज्ञ
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A masterly poetic interpretation of entire Yagya sequence by Dr. Hargovind Singh
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
अग्नि है सच्चा पुरोहित,
ज्योति जिसकी ऊर्ध्वगामी ,
आत्मवत सबको बनाये ,
उष्णता - निष्ठा अकामी ;
यह पवित्रीकरण करदे शुद्ध,
तन के साथ मन भी ,
शक्तियाँ दैवी पधारें ,
हो विसर्जित कलुष सारा।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
** शिखा-वंदन -- प्राणायाम -- न्यास **
देवगृह मस्तिष्क जिसमें ,
ज्ञान की देवी प्रतिष्ठित ,
यह शिखा उनकी ध्वजा है,
हम ध्वजारोहण करें नित ;
भरे प्राणायाम हममें
आत्मबल, तनबल , मनोबल ,
प्राण खींचें श्रेष्ठता को,
सोखती है भूमि ज्यों जल ;
इन्द्रियाँ संयत बनाये,
न्यास का विन्यास सारा ।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
** पृथ्वी पूजन -- कलश पूजन -- दीप पूजन -- षोडशोपचार पूजन **
सभी पृथ्वी पुत्र हैं हम,
भूमि है माता हमारी ,
हो सुपूजित, सिद्धि-सेवित,
स्वर्ग-वन्दित जननि प्यारी ;
जल कलश की भांति सिरजन
शान्ति का सन्देश दें हम ,
पिंड में ब्रह्माण्ड देखें ,
दीप दमके दूर हो तम ;
पूज्य पुरुषों (देवों) का करें,
सत्कार सोलह रीति द्वारा।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
** स्वस्तिवाचन -- रक्षाविधान **
स्वस्तिवाचन चाहता
समभाव से कल्याण सबका ,
ध्वंस तज रचनात्मक बन
साज साजें शान्ति सुख का ;
दुष्टता से किन्तु हम चौकस रहें ,
वह है विनाशक ;
सज्जनों को शिथिल-विघटित
देख करती विघ्न भरसक;
संगठित हो कर अनय को
दें सदा उत्तर करारा ।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
** अग्निस्थापना -- गायत्री स्तवन -- अग्नि प्रदीपन **
स्थापना कहती अनल की ,
ब्रह्म का वर्चस्व जागे ,
हों जहाँ भी ज्योति-दर्शन,
शिर झुकायें गर्व त्यागें ;
अधिष्ठाता-वन्दना है,
स्तवन-गायत्री मनोहर,
ज्ञानरूपी यजन से हो
प्रभा प्राणों की प्रखरतर ;
दीप्त जीवन चार दिन का
भी यशस्वी सुखद प्यारा।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
** समिधाधान -- जल प्रसेचन **
चार समिधायें सिखातीं ,
हों सरल, स्नेही, लचीले ;
हस्तगत पुरुषार्थ चारों,
यज्ञ अर्पित हों सजीले ;
प्राण-रयि संयोग सूचित
कर रहा जल का प्रसेचन,
तेज हो माधुर्य-मण्डित ,
त्याग-मूलक हो उपार्जन ;
शान्ति-भावित क्रांति का
गूंजे चतुर्दिक सरस नारा ।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
** आहुति -- स्विष्टकृत होम -- पूर्णाहुति - वसोधारा **
लॊक-कल्याणार्थ आहुति दें
परमप्रिय वस्तुओं की,
स्विष्टकृत माधुर्य
सर्वांगीण सेवा है सुरों की;
दौड़ लेते छुद्रजन भी
पतन-पथ पर तो सहज ही,
किन्तु पूर्णाहुति शिखर सी
चूमते विरले मनुज ही;
अंत तक उत्साह अविरल
ही हमारी वसोधारा ।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
** आरती -- घृत-अवघ्राण -- भस्म-धारण -- क्षमा याचन **
फैले प्रभा परमार्थ की,
यह व्यक्त करती आरती ,
घृत-घ्राण देता दिव्य
वातावरण-पोषक भारती ;
देह नश्वर है - न भूलो
यह सिखाता भस्म-धारण ,
रुष्ट स्वजनों को मना लें,
करें त्रुटि हित क्षमा याचन ;
मुग्ध है संसार उस पर ,
निज ह्रदय जिसने निखारा ।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
** नमस्कार - शुभकामना -- शान्ति अभिषिञ्चन -- प्रदक्षिणा
यज्ञ के आदर्श को हम
दण्डवत प्रणिपात करते,
अशुभ चिंतन न हो हमसे,
भावना यह नित्य भरते;
शान्ति अभिषिञ्चन भरे
गरिमा त्रिविध सब परिजनों में,
ज्योति, सत , अमरत्व पायें ,
तम-असत-कवलित क्षणों में ;
यज्ञशाला प्रदक्षिण में ,
कर्मपथ विधिवत सँवारा ।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
** सूर्य-अर्घ्यदान -- विसर्जन -- सत्संकल्प **
प्रेरणा-प्रेरक मिलन है
जल-कलश-सवितार्घ्य -अर्पण ,
सूर्य सावित्री सदृश हो
ब्रह्म में लवलीन जीवन ;
सिद्धि दें शुभ कार्य में
जिनकी उपस्थिति - प्रेरणायें ,
क्यों न उन सबकी विदाई
भावभीनी हम बनायें ;
चाहता संकल्प अपना
स्वर्ग धरती पर उतारा ।
क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।।
--डा. हरगोविन्द सिंह , राठ , हमीरपुर (उत्तरप्रदेश) भारत
A masterly poetic interpretation of entire Yagya sequence by Dr. Hargovind Singh