जीवन यज्ञ *********** क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। अग्नि है सच्चा पुरोहित, ज्योति जिसकी ऊर्ध्वगामी , आत्मवत सबको बनाये , उष्णता - निष्ठा अकामी ; यह पवित्रीकरण करदे शुद्ध, तन के साथ मन भी , शक्तियाँ दैवी पधारें , हो विसर्जित कलुष सारा। क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। ** शिखा-वंदन -- प्राणायाम -- न्यास ** देवगृह मस्तिष्क जिसमें , ज्ञान की देवी प्रतिष्ठित , यह शिखा उनकी ध्वजा है, हम ध्वजारोहण करें नित ; भरे प्राणायाम हममें आत्मबल, तनबल , मनोबल , प्राण खींचें श्रेष्ठता को, सोखती है भूमि ज्यों जल ; इन्द्रियाँ संयत बनाये, न्यास का विन्यास सारा । क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। ** पृथ्वी पूजन -- कलश पूजन -- दीप पूजन -- षोडशोपचार पूजन ** सभी पृथ्वी पुत्र हैं हम, भूमि है माता हमारी , हो सुपूजित, सिद्धि-सेवित, स्वर्ग-वन्दित जननि प्यारी ; जल कलश की भांति सिरजन शान्ति का सन्देश दें हम , पिंड में ब्रह्माण्ड देखें , दीप दमके दूर हो तम ; पूज्य पुरुषों (देवों) का करें, सत्कार सोलह रीति द्वारा। क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। ** स्वस्तिवाचन -- रक्षाविधान ** स्वस्तिवाचन चाहता समभाव से कल्याण सबका , ध्वंस तज रचनात्मक बन साज साजें शान्ति सुख का ; दुष्टता से किन्तु हम चौकस रहें , वह है विनाशक ; सज्जनों को शिथिल-विघटित देख करती विघ्न भरसक; संगठित हो कर अनय को दें सदा उत्तर करारा । क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। ** अग्निस्थापना -- गायत्री स्तवन -- अग्नि प्रदीपन ** स्थापना कहती अनल की , ब्रह्म का वर्चस्व जागे , हों जहाँ भी ज्योति-दर्शन, शिर झुकायें गर्व त्यागें ; अधिष्ठाता-वन्दना है, स्तवन-गायत्री मनोहर, ज्ञानरूपी यजन से हो प्रभा प्राणों की प्रखरतर ; दीप्त जीवन चार दिन का भी यशस्वी सुखद प्यारा। क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। ** समिधाधान -- जल प्रसेचन ** चार समिधायें सिखातीं , हों सरल, स्नेही, लचीले ; हस्तगत पुरुषार्थ चारों, यज्ञ अर्पित हों सजीले ; प्राण-रयि संयोग सूचित कर रहा जल का प्रसेचन, तेज हो माधुर्य-मण्डित , त्याग-मूलक हो उपार्जन ; शान्ति-भावित क्रांति का गूंजे चतुर्दिक सरस नारा । क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। ** आहुति -- स्विष्टकृत होम -- पूर्णाहुति - वसोधारा ** लॊक-कल्याणार्थ आहुति दें परमप्रिय वस्तुओं की, स्विष्टकृत माधुर्य सर्वांगीण सेवा है सुरों की; दौड़ लेते छुद्रजन भी पतन-पथ पर तो सहज ही, किन्तु पूर्णाहुति शिखर सी चूमते विरले मनुज ही; अंत तक उत्साह अविरल ही हमारी वसोधारा । क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। ** आरती -- घृत-अवघ्राण -- भस्म-धारण -- क्षमा याचन ** फैले प्रभा परमार्थ की, यह व्यक्त करती आरती , घृत-घ्राण देता दिव्य वातावरण-पोषक भारती ; देह नश्वर है - न भूलो यह सिखाता भस्म-धारण , रुष्ट स्वजनों को मना लें, करें त्रुटि हित क्षमा याचन ; मुग्ध है संसार उस पर , निज ह्रदय जिसने निखारा । क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। ** नमस्कार - शुभकामना -- शान्ति अभिषिञ्चन -- प्रदक्षिणा यज्ञ के आदर्श को हम दण्डवत प्रणिपात करते, अशुभ चिंतन न हो हमसे, भावना यह नित्य भरते; शान्ति अभिषिञ्चन भरे गरिमा त्रिविध सब परिजनों में, ज्योति, सत , अमरत्व पायें , तम-असत-कवलित क्षणों में ; यज्ञशाला प्रदक्षिण में , कर्मपथ विधिवत सँवारा । क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। ** सूर्य-अर्घ्यदान -- विसर्जन -- सत्संकल्प ** प्रेरणा-प्रेरक मिलन है जल-कलश-सवितार्घ्य -अर्पण , सूर्य सावित्री सदृश हो ब्रह्म में लवलीन जीवन ; सिद्धि दें शुभ कार्य में जिनकी उपस्थिति - प्रेरणायें , क्यों न उन सबकी विदाई भावभीनी हम बनायें ; चाहता संकल्प अपना स्वर्ग धरती पर उतारा । क्रांति के यजमान हैं हम, यज्ञमय जीवन हमारा ।। --डा. हरगोविन्द सिंह , राठ , हमीरपुर (उत्तरप्रदेश) भारत |