क्या हो गया प्रकाश पुत्र को ?
-- श्री मंगल विजय (भोपाल) की कालजयी रचना क्या हो गया प्रकाश पुत्र को ! अन्धकार स्वीकार कर लिया | तम से समझौता कर डाला, तम को नातेदार कर लिया ||
हर प्रकाश का पुत्र सुना है, अन्धकार को पी लेता है | फिर प्रकाश का पुत्र किस तरह अन्धकार में जी लेता है ? कैसी है विडम्बना, तम को जीवन का आधार कर लिया ! तम से समझौता कर डाला, तम को नातेदार कर लिया || क्या हो गया प्रकाश पुत्र को ...........
(जो) तम के बंदी बने जनों को मुक्ति दिलाने चल पड़ता था | कैसे भी तम के घेरे में जो अनवरत जला करता था || तम का बंदी होने से फिर क्यों न स्वयं इनकार कर दिया ? तम से समझौता कर डाला, तम को नातेदार कर लिया || क्या हो गया प्रकाश पुत्र को ...........
जो, अथाह तम में डूबों को बाहर ले आया करता था | तम के तूफानों से जिसका साहस टकराया करता था || (वह) तम से हार मान बैठा क्यों, क्यों तम को मझदार कर लिया ? तम से समझौता कर डाला, तम को नातेदार कर लिया || क्या हो गया प्रकाश पुत्र को ...........
ओ ! प्रकाश के पुत्र , ह्रदय की ज्योति तनिक उकसा कर देखो | अपने कन्धों से , अनचाहे अन्धकार का जुआ फेंको || तुमने घोर अमावस में भी तो तम का प्रतिकार कर दिया ! (फिर क्यों) तम से समझौता कर डाला, तम को नातेदार कर लिया || क्या हो गया प्रकाश पुत्र को ...........
स्नेह भरो मन के दीपक में , जलने दो जीवन की बाती | जन - जन को प्रकाश फिर बांटे , जीवन ज्योति सहज मुस्काती || क्या कर लेगा अन्धकार अब जल मरना स्वीकार लिया | तम से समझौता करने से, जीते जी इंकार कर दिया !!
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